
सैकड़ों छात्रों का भविष्य अंधेरे में है। शिक्षकों के न होने से यह केवल नाम मात्र का विद्यालय रह चुका है। छात्रों में पढ़ने को लेकर रुचि होने के बावजूद सरकार की विफलता, बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रही है।
शिक्षा की रोशनी फैलाने के उद्देश्य से 1976 में ग्रामीणों और समाजसेवियों के चंदे व दान से स्थापित रामकेश्वर उच्च विद्यालय कुन्दरी आज बदहाली के आंसू बहा रहा है। गांव के गरीब बच्चों, खासकर बच्चियों को शिक्षित कर उनका भविष्य संवारने का सपना देखने वालों का त्याग और मेहनत आज सरकारी उपेक्षा के कारण धूमिल हो गया है।
विद्यालय में वर्तमान में 300 से अधिक छात्र पढ़ते हैं, जबकि शिक्षकों की संख्या मात्र तीन है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजन कुमार का कहना है कि शिक्षण कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए कम से कम 10 शिक्षकों की आवश्यकता है। इसके लिए कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और यहां तक कि उपयुक्त पलामू तक से मिलकर गुहार लगाई गई, लेकिन केवल आश्वासन ही मिला।
विद्यालय की इमारतें भी जर्जर हो चुकी हैं। छत से पानी टपकना और प्लास्टर गिरना आम बात है, जिससे किसी भी समय हादसा होने का डर बना रहता है। शौचालय की स्थिति भी इतनी खराब है कि बच्चियां वहां जाने से कतराती हैं।
सेवानिवृत्त शिक्षक अर्जुन महतो, वसंत वर्मा और विनोद राम बताते हैं कि विद्यालय की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को दूर-दराज के स्कूलों में पैदल जाने की मजबूरी से मुक्ति दिलाने के लिए की गई थी। तत्कालीन समाजसेवियों जैसे स्व. रामकेश्वर सिंह ने न केवल पांच एकड़ बेशकीमती जमीन दान दी, बल्कि कई लोगों ने संसाधन जुटाकर स्कूल को खड़ा किया।

आज यह विद्यालय अपने संस्थापकों के त्याग की अनदेखी और सरकारी लापरवाही का शिकार है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों ने विद्यालय को उसके हाल पर छोड़ दिया है। स्थिति यह है कि स्व. रामकेश्वर सिंह की प्रतिमा तक विद्यालय परिसर में नहीं लगाई गई, जबकि उन्होंने अपने गांव के बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था।
(लेस्लीगंज से जैलेश की रिपोर्ट)