
सरकारी स्वास्थ्य योजनाएं और करोड़ों के बजट की घोषणाएं छिपादोहर के अस्पताल की जमीनी हकीकत के सामने बेमानी साबित हो रही हैं। अस्पताल खुद बीमार हालात में है। यहां न डॉक्टर हैं, न दवा और न ही आपातकालीन सेवाएं—मरीजों का इलाज पूरी तरह भगवान भरोसे चल रहा है।
डॉक्टरों की कमी से बढ़ी परेशानी
ग्रामीणों के अनुसार, अस्पताल में महीनों से कोई स्थायी डॉक्टर नहीं आता। विशेषज्ञ डॉक्टरों की तो बात ही छोड़िए, कंपाउंडर तक नियमित रूप से मौजूद नहीं होता। गंभीर मरीजों को लातेहार या डाल्टनगंज भेजना पड़ता है, वह भी निजी साधनों से, जो आर्थिक बोझ बढ़ाता है।
एंबुलेंस सेवा ठप, मरीज ठेले पर
अस्पताल की एंबुलेंस वर्षों से खराब पड़ी है। कई बार इसके निजी इस्तेमाल की शिकायतें भी मिलती हैं। नतीजतन, मरीजों को ट्रैक्टर, ठेला या बाइक पर लादकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। कई बार समय पर इलाज न मिलने से मौत तक हो जाती है।
प्रशासन मौन, जनता नाराज
ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इमारत खड़ी है पर सुविधाएं गायब हैं। दवाओं की आपूर्ति भी अनियमित है, जिससे नाराजगी बढ़ रही है।
लोगों ने जिला प्रशासन और झारखंड सरकार से स्थायी डॉक्टरों की नियुक्ति, एंबुलेंस सेवा की बहाली, दवाओं की समय पर आपूर्ति और अस्पताल प्रबंधन की जवाबदेही तय करने की मांग की है। उनका कहना है कि अगर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो यह अस्पताल खंडहर बन जाएगा और लोगों की जान जोखिम में पड़ती रहेगी।
छिपादोहर से पंकज गिरी की रिपोर्ट