
गुमला जिले के कुडुख आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली डॉ. पार्वती तिर्की को उनके हिंदी कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। यह झारखंड के साहित्यिक परिदृश्य के लिए गौरव का क्षण है।
पुरस्कार की घोषणा के बाद अपनी प्रतिक्रिया में डॉ. पार्वती तिर्की ने कहा, “मैंने कविताओं के जरिए संवाद की कोशिश की है। इस संवाद का सम्मान हुआ है, यह मेरे लिए अत्यंत सुखद है।” उन्होंने आगे कहा कि संवाद के माध्यम से विविध जनसंस्कृतियों के बीच समझ, तालमेल और विश्वास का रिश्ता बनता है। यही लेखन का उद्देश्य है और इसी प्रयास को यह पुरस्कार मिला है, जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा है।
डॉ. तिर्की की यह कृति सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक अस्मिता और स्त्री-संवेदनाओं को केंद्र में रखती है। उनके लेखन में आदिवासी समाज की जड़ों से जुड़ी आवाजें और अनुभव शामिल हैं, जो समकालीन हिंदी कविता को नया आयाम देते हैं।
राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने इस अवसर पर कहा, “युवा प्रतिभा का सम्मान गर्व की बात है। पार्वती तिर्की की पहली कृति का प्रकाशन राजकमल ने किया था और आज जब उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान मिला है, तो यह हमारे लिए भी गर्व का विषय है।”
साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार देश के उभरते साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए हर वर्ष दिया जाता है। डॉ. पार्वती तिर्की का यह सम्मान न केवल झारखंड बल्कि पूरे आदिवासी साहित्यिक समुदाय के लिए प्रेरणा है।
पार्वती तिर्की का जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले में हुआ. उनकी आरंभिक शिक्षा गुमला के जवाहर नवोदय विद्यालय में हुई. इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (यूपी) से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर पीएचडी की डिग्री हासिल की. वर्तमान में वह रांची के राम लखन सिंह यादव कॉलेज (रांची विश्वविद्यालय) के हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं.
‘फिर उगना’ पार्वती तिर्की की पहली काव्य-कृति है. यह वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी. इस संग्रह की कविताएं सरल, सच्ची और संवेदनशील भाषा में लिखी गयी हैं. पाठकों को सीधे संवाद की तरह महसूस होती हैं. जीवन की जटिलताओं को काफी सहज ढंग से कहने में सक्षम हैं. इन कविताओं में धरती, पेड़, चिड़ियां, चांद-सितारे और जंगल सिर्फ प्रतीक नहीं हैं, वे कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया की तरह मौजूद हैं. पार्वती तिर्की अपनी कविताओं में बिना किसी कृत्रिम सजावट के आदिवासी जीवन के अनुभवों को कविता का हिस्सा बनाती हैं. वे आधुनिक सभ्यता के दबाव और आदिवासी संस्कृति की जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को भी गहराई से रेखांकित करती हैं. पार्वती की विशेष अभिरुचि कविताओं और लोकगीतों में है. वे कहानियां भी लिखती हैं. उनकी रचनाएं हिन्दी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.