
हाई कोर्ट के जज के खिलाफ कारवाई करना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है। आपको जानकार हैरानी होगी कि पुलिस सीधे इनके खिलाफ FIR भी दर्ज नहीं कर सकती। जजों को हटाने के लिए संविधान में लंबी प्रक्रिया दी गई है, जिसे पूरा करते करते शायद सालों का समय लग जाए। दिल्ली हाई के जज यशवंत वर्मा के आवास में लगी आग के बाद 15 करोड़ से अधिक कैश मिलने की खबर मीडिया में लगातार चल रही है। इस घटना ने जज यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के सवाल खड़े कर दिए हैं।
दूसरी तरफ जजों के लिए महंगी सैलरी से लेकर तमाम तरह की सुविधाओं का प्रावधान है। बीबीसी हिंदी ने इसपर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें सातवें वेतन आयोग के अनुसार जज की सैलरी 2.25 लाख रुपए मासिक बताई गई है साथ ही 27 हजार का मासिक भत्ता अलग से दिया जाता है। इसके अलावे सरकारी आवास, गाड़ी और 200 लीटर पेट्रोल हर महीने मुफ्त दिया जाता है। मुफ्त सरकारी इलाज की व्यवस्था है, कुछ यूनिट तक बिजली फ्री है, नौकर और ड्राइवर भी फ्री है।
जजों को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में पहले प्रस्ताव लाना होता है जिसे उस सदन के स्पीकर स्वीकार कर सकते हैं। फिर जांच कमिटी बनाई जाएगी जो जांच की रिपोर्ट सदन को सौंपेगी। मामला अभी और बाकी है, रिपोर्ट पर सदन में चर्चा की जाएगी, चर्चा के बाद वोटिंग की जाएगी फिर इसे विशेष बहुमत से पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। दिलचस्प बात है कि आज तक किसी भी जज को इस प्रक्रिया के तहत हटाया नहीं गया है। हालांकि कुछ गिने चुने जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए गए हैं लेकिन अभी तक किसी भी जज को भ्रष्टाचार के लिए सजा नहीं हुई है।